Tally keyboard shortcut key को सीखे
Part :-1अब आसानी से आप Tally सीख सकते हैं सिर्फ www.edustory.in पर वो भी कम से कम समय मे जो आसान शब्दों मे लिखा जा रहा है क्योकि आपका समय बहुत बहुमुल्य है। लेकिन आपका समय को महत्व रखता हू चलिए अब सीखे tally ERP 9 📖
2. पूँजी (Capital):- व्यापार का मालिक जो रुपया या माल सम्पति व्यापार मे लगाता है उसे पूँजी कहते है उदाहरण के लिए कृष्णा ने अपने व्यापार मे 20,000 रुपया नगद एवम 10,000 रुपया के माल जैसे कपड़े का व्यापार शुरू किया तो ऐसी स्थिति मे उस व्यापार मे लगी हुई पूँजी 30,000 रुपया हुआ व्यापार मे लाभ होने से उसका पूँजी बढ़ता है और हानि होने पर घटता है।
3. आहरण (Drawing) :- व्यापार का स्वामी के लिए मुखियाँ अपने निजी खर्च के लिए समय-समय पर जो राशि या रुपया व्यापार से निकलता है उसका आहरण या निजी खर्च कहलाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए की कृष्णा एक कपड़े का व्यापारी है वह अपने परिवार के लिए 100 रुपया के कपड़े अपने व्यापार मे से ले जाता है तो ये 600 रुपया के कपड़े उसका आहरण कहलायेगा विक्रय नही कहलायेगा।
4. माल/समाग्री (Goods) :- माल वस्तु को कहा जाता है जिसका क्रय-विक्रय या व्यापार किया जाता है माल के अंतर्गत वस्तुओ के निर्माण हेतु प्राप्त कच्ची समाग्री या तैयार वस्तुए हो सकती है जैसे कपड़ा का व्यापारी द्वारा खरीदा गया कपड़ा, चीनी मील मालिक द्वारा खरीदा गया गन्ना तथा तैयारी चीनी के लिए उन व्यापारी के लिए माल होगा।
5. क्रय- खरीदारी(Purchase) :- पुनः विक्रय के उदेश्य से व्यापार से खरीदा गया माल क्रय या खरीदारी कहलाता है व्यापार मे माल नगद या उधार खरीदा जा सकता है उदाहरण यदि कोई कपड़ा व्यापारी विक्रय के लिए कपड़ा खरीदा व्यापारी विक्रय के लिए खरीदा है तो वह क्रय कहलाएगा। लेकिन यदि वह अपने संचालन दुकान के लिए furniture खरीदा है तो क्रय या purchase के अंतर्गत नही आएगा क्योकि यह फर्नीचर उसने अपने दुकान के संचालन के लिए खरीदा है नही कि बेचने के लिए।
6. विक्रय/विक्री (Sales) :- लाभ कमाने के लिए जो माल बेचा जाता है उसे विक्रय कहा जाता है जो माल नगद बेचा जाता है उसे नगद विक्रय (Cash Sales) और जो उधार बेचा जाता है उधार विक्रय (Credit Sales) कहा जाता है और नगद और उधार दोनों को मिलाकर कुल विक्रय या (Trunover) कहा जाता है कभी-कभी व्यापारी घट्टा लगाकर भी माल को बेचता है जो घट्टा (Loss) हानि कहा जाता है।
7. क्रय वापसी (Purchase Return) :- जब खरीदे गये माल मे से कुछ माल विभिन्न कारणों से वापस कर दिया जाता है उसे क्रय वापसी कहा जाता है।
8. विक्रय वापसी(Sales Return):- जब बेचे हुये माल का कुछ भाग विभिन्न कारणों से ग्राहक को लौटा या वापस कर देता है तो उसे विक्रय वापसी (Sales Return) कहते है। उदाहरण के लिए किसी ग्राहक को हमने 100 रुपया का माल बेचा और उसने 10 रुपया का माल वापस कर दिया तो यह (Sales Return) कहा जाएगा।
Part :-2
1.रहतिया (Stock)
2.लेनदार (Creditor)
3.देनदार (Debitor)
4.दायित्व (Liabilities)
a स्थायी दायित्व (Long Teem/Fixed Liabilities
b चालू दायित्व (Stort Term/Current Liabilities
5.सम्पति (Assets)
a स्थायी सम्पति (Fixed Asset)
b चालू सम्पति (Current Asset)
6.व्यय (Expenses)
a प्रत्यक्ष व्यय(Direct Expense)
b अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Expenses)
1.रहतिया (Stock) :- किसी भी व्यवसाय मे वर्तमान हमारे पास जो माल किसी भी मात्रा मे उपलब्धा रहता है वह रहतिया कहलाता है साल के अंत मे जो माल बिना बिके रह जाता है। वह (Clossing Stock) कहा जाता है और अगले साल पहले दिन वही माल Opening Stock कहा जाता है।
2.लेनदार (Creditor) :- वह व्यक्ति या संस्था जो हमारे कम्पनी या हमे माल रुपया उधार देती है तो लेने वाला ऋणदाता या लेनदार कहलाता है। सनक्षिप्त मे उधार माल बेचने वाला Credit कहलाता है इस व्यक्ति को भविष्य मे ऋणी से धन नासिक प्राप्त करना होता है
3.देनदार(Debitor) :- वह व्यक्ति या संस्था जो हमारे या हमारी संस्था से रुपया या माल उधार लेती है उसे Debitor कहते है संक्षिप्त मे उधार माल ऋणी या Debitor कहलाता है इस व्यक्ति को निश्चित दिन या अवधि के बाद रुपया चुकाना होता है।
4.दायित्व (Liabilities) :- वे सब भी ऋण जो अथवा अपने स्वामियों के प्रति या चुकाने होते है उसे दायित्व Liabilities कहा जाता है ।
दायित्व दो प्रकार के होते है-
a स्थायी दायित्व (Long Term/Fixed Term) :- वो दायित्व है जो एक साल से ज्यादा समय के पश्चात या व्यापारी सम्पति पर चुकानी होती है उदाहरण हमने अपने Office के लिए उधार पर फर्नीचर लिया यानि हमे दो साल के भीतर रुपया चुकाना है तो इसे Long Term /Fixed Term Liabilities कहा जाएगा।
b चालू दायित्व या चलित दायित्व (Current Liabilities) :- यह वह दायित्व है जिन्हे एक वर्ष से कम समय मे देना होता है उदाहरण हमे अपने लेनदार को एक साल के भीतर मे ही रुपया चुकाना या वापस करना होता है यह चालू दायित्व कहलाता है।
5.सम्पति (Assets) :- व्यापार मे समाप्त वस्तु जो व्यापार संचालन मे सहायक होती है उसे सम्पति या Assets कहते है।
सम्पति दो प्रकार के होते है-
a अचल या स्थायी सम्पति (Fixed Assets) :- वे वस्तु जिन्हे स्थायी रूप से चलाने के लिए खरीदी जाती है। और जिन्हे बेचने के लिए नही खरीदा जाता है और जिन्हे बार-बार उपयोग किया जाता है। स्थायी या अचल सम्पति कहा जाता है इसके अंतर्गत भवन, मशीनें, मोटरगाड़ी, इत्यादि आती है।
b चल सम्पति या अस्थायी सम्पति (Current Assets) :- ऐसी सम्पति जो स्थायी रूप से व्यापार मे नही रहता वह अस्थायी सम्पति कहलाती है जैसे- रोकड़ बैंक मे जमाधन Stock वे सभी संपतियाँ जिन्हे आसानी वह शीघ्रता से नही नगदी मे परिवर्तन किया जाता है।
6.व्यय (Expenses) :- माल के उत्पादन और बेचने तक जो भी खर्च होते है व्यय Expenses कहा जाता है।
Expenses मुख्यतः दो प्रकार के होते है-
a प्रत्यक्ष व्यय (Direct Expenses) :- यह वह खर्च होते है व्यापारी माल खरीदते वक्त करता है या माल की उत्पादन मे करता है कच्चा या पक्का माल खरीदने मे लगने वाला भाड़ा और भी इसमें शामिल किया जाता है। उत्पादन की दशा मे कच्चे माल की खरीदारी से लेकर उसे विक्रय योग लाने मे जो भी खर्च दोगे वे सब प्रत्यक्ष व्यय Direct Expenses कहते है जैसे- गाड़ी भाड़ा, बिजली बिल, मजदूर, एवम अन्य उत्पादन अन्य व्यय इत्यादि।
अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Expenses) :- ये वे खर्च होते है जिनका संबंध वस्तु की खरीदारी या उसके निर्माण से न होकर वस्तु की विक्रय या कर्यालय सम्बंधित व्यय से होता है। आने वाले खर्चे है विज्ञापन वेतन कर्मचारी को दिये जाने वाला कमीशन, बिजली का बिल, ग्राहकों को दी जाने वाली छुट ऋण पर ब्याज पर (Bad Debit ) डूबता धन इत्यादि ।
Part :-3
Terminolgy of Accounting
1.राजस्व (Revenue)
2.आय (Income)
3.प्रत्यक्ष आय (Direct Income)
4.अप्रत्यक्ष आय (Indirect Income)
5.बट्टा/छुट (Discount)
6.व्यापारी बट्टा/छुट (Trade Discount)
7.नगद बट्टा (Cash Discount)
8.डूबत ऋण (Bad Debit)
9.लेनदेन (Transaction )
10.प्रमाणक (Voucher)
1.राजस्व (Revenue) :- माल (Goods ) को बाजार मे बेचने पर या स sell करने पर उससे जो प्राप्ति होती है वह राजस्व कहलाता है।
2.आय (Income) :- किसी भी माल को बाजार मे बेचने पर जो राजस्व प्राप्ति होती है उसमे से Expenses काट लेने पर जो राशि शेष रह जाती है वह आय कहलाता है।
Income दो प्रकार के होते है -
a प्रत्यक्ष आय (Direct Income) :- प्रत्यक्ष आय वह आय है जो हमारे मुख्य व्यवसाय से मिलती है मान लीजिए की हमारी Shop Industiries दुकानदारी है उससे प्राप्त होने वाले आय Direct कहलायेगी।
b अप्रत्यक्ष आय (Indirect Income) :- मुख्य व्यवसाय के अलावा अन्य किसी माध्यम से आने वाला आय अप्रत्यक्ष आय कहलाती है उदाहरण मान लीजिए की हमारी shop Industiries है उसके अलावा कुछ हमने उधार कर दिये है तो उससे प्राप्त होने वाला ब्याज Indirect Income कहलाती है।
3.बट्टा/छुट (Discount) :- व्यापारी द्वारा अपने ग्राहक को दिये जाने वाली रियाशत बट्टा या छुट कहलाती है।
Discount दो प्रकार के होते है-
a व्यापारी छुट (Trade Discount) :- व्यापारी माल बेचते समय माल के मूल्य मे या बिल की राशि मे कुछ कमी करता है व्यापारी बट्टा या Trade Discount कहलाती है। यह छुट ग्राहक को और अधिक माल खरीदने के लिए प्रेरित करने हेतु दी जाती है यह छुट माल के विक्रय मूल्य मे से या बिल के राशि मे से ही कम कर दिया जाता है।
4.नगद बट्टा (Cash Discount) :- व्यापारी चालान निश्यचित अवधि मे भुगतान करने के सुविधा प्रदान की जाती है अगर ग्राहक अवधि के पहले ही भुगतान कर रहे होते है तो उसे कुछ छुट दी जाती है।
5.डूबत ऋण (Bad Debit) :- व्यापारी के उधार बेचे हुये माल की रकम नही मिल पाती है उसे डूबत ऋण Bad Debities कहा जाता है। उदाहरण किसी व्यापारी को कृष्णा से पाँच लाख रुपया लेने से लेकिन कृष्णा को दिवालिया हो जाने से उसकी सम्पति से मात्र चार लाख रुपया वशूल हो सके। इसमें एक लाख रुपया डूबत ऋण कहलाती है।
6.लेनदेन (Transaction) :- व्यापारी द्वारा सभी किये जाने वाला आदान-प्रदान जैसे- नगद रुपया, खरीद विक्री इत्यादि है मुद्रा या मुद्रा से द्वारा मापा जा सके लेनदेन कहलाता है जब सवदे का तुरंत भुगतान किया जाता है उसे नगद लेन-देन Transaction कहा जाता है तथा भुगतान भविष्य मे किया जाना होता है तो उसे उधार लेनेदेन कहा जाता है
7.प्रमाणक (Voucher ) :- व्यापार संबंधित सभी व्यवहारों वह लेनदेन के प्रमाण के लिए जो भी Docoment लिए या दी जाते है प्रमाणक या Voucher कहलाते है उदाहरण Purchase तथा sell हेतु रसिदो इत्यादि प्रमाणिक या Voucher कहलाते है इनका जरूरत पड़ने पर प्रमाणक प्रसुस्त करने के लिए किया जाता है।
Part :-4
1.Meaning of Account (खाते से आय)
2.Classification of Account (खातो का वर्गीकरण)
3.Rules of Accounting (खातो को लिखने का नियम)
* Debit (यानि खर्चा ) :- जब किसी खाते के ledger के खर्च पक्ष मे प्रविष्ट्री की जाती है तो इसे Debit या खर्चा कहा जाता है। Dr. इसका संक्षिप्त रूप है जब किसी खाते के जमा पक्ष मे प्रविष्ट्री की जाती है तो इसे क्रेडिट या जमा कहा जाता है Cr. इसका रूप है।
2 Classification of Account (खातो का वर्गीकरण)
खाते तीन प्रकार के होते है-
1.व्यक्तिगत खाता (Personal Account) :- ये वो खाते होते है जो किसी व्यक्ति या संस्था इत्यादि से संबंध रखते हो जैसे- कृष्णा का खाता, बैंक का खाता, दुर्गा कंप्यूटर का खाता इत्यादि।
2. वास्तविक खाता (Real Account) :- ये वो खाता होते है जो किसी वस्तु या सम्पति से संबंध रखते हो जैसे- Cash Account, Furniture Account, Machinary Account Etc.
3.नाममात्र खाते (Nominal Account) :- ये वह खाता है जिनका संबंध किसी लाभ या हानि, आय या व्यय से होते है इन्हे आय व्यय के नाममात्र खाता कहते है जैसे- Interest A/c इत्यादि इन खातो का Account साल भर के आय या व्यय को दर्शाता है और साल भर के अंत मे इन्हे व्यापार या लाभ हानि खाते हस्त्तान्तिरित कर के बंद कर दिया जाता है।
3.खातो को लिखने का नियम (Rules of Accounting)
1 व्यक्तिगत खाते (Personal A/c) :- पाने वाले को डेबिट करो, तथा देने वाले को क्रेडिट करो।
Debit the Receiver & Credit the Giver
Note:- जब भी हम कोई लेनदेन करते है तो इससे दो खाते प्रभावित होते है हम इससे एक उदाहरण के द्वारा समझते है मान लीजिए हमने राम को 1000 रुपया चुकाया अब यहाँ पर दो खाता प्रभावित हुए एक तो राम का खाता और दूसरा Cash Account जो की Real Account के अंतर्गत आता है। चूकि Ram का खाता Personal Account है और उसने Cash प्राप्त किया है इसलिए उसका खाता डेबिट होगा Cash Credit होगा।
2.वास्तविक खाता (Real Account) :- जो वस्तु व्यापार मे आये उसे डेबिट करो, जो वस्तु व्यापार से जाएँ उसे क्रेडिट करो
Debit what comes in & Credit what goes out उदाहरण के तौर पर Personal Account के उदाहरण मे हमने राम को 1000 रुपया दिया यानि Cash गया इसलिए हम Cash को Credit करेंगे इसके विपरीत यदि हम ने Ram से Cash लिया होता तो व्यापार मे आता इसलिए Cash Debit होता है पर जब सौवदे के दोनो पक्ष Real Account वाले होते है तो आने वाले सम्पति या वस्तु का खाता डेबिट होगा और जाने वाली सम्पति या वस्तु खाता क्रेडिट होगा जैसे- हमने 1000 रुपया का नगद Furniture खरीदा यहाँ furniture आया और Cash गया दोनों ही Real Account है इसलिए furniture को और Cash Account को क्रेडिट किया जाएगा।
3.नाममात्र (Nominal Account) :- व्यय एवम हानियों को डेबिट करो तथा आय एवम लाभो को क्रेडिट करो
Debit the Expenses & losses and Credit the Income Goines
उदाहरण के लिए हमने 1500 नगदी वेतन चुकाया यहाँ पर दो खाते प्रभावित हुए एक तो Salary A/c जो Nominal A/c है और दूसरा Cash A/c जो Real A/c है इसलिए Entery करते समय दोनो खातो के नियम का पालन करना होगा सैलरी चूकि एक प्रकार का खर्चा है और यह Nominal A/c मे आता है तो जैसा की Nominal A/c का नियम है खर्चे और व्यय को डेबिट करो तो यहाँ सैलरी खाता डेबिट होगा और Cash चूकि Real A/c के अंतर्गत आता है और Real A/c के नियमानुसार जो वस्तु व्यापार से जाये उसे Credit किया जाएगा।
What is Tally erp 9 in accounting? Keyword shortcut key financial
By -Chandan kumar
नवंबर 30, 2022
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